भले ही
नकार दिए जाएं
घर के आंगनों से हम ,
चाहे
ज़रा सी ही जगह मिले
या,, सिर्फ चुटकी भर धूप,,
अब
स्वयं को सींचना होगा हमें
स्वयं की ही जड़ों से,,
कि बदल रही हैं अपना रुख
ये बारिशें भी,,
सुनो
व्यवस्थित करना होगा
अपना एक अलग ही पर्यावरण,,
हमें
एक जिद्दी पौध की तरह
हर हाल में उग आना होगा
अपनी-अपनी मनचाही जगहों पर !!
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